नाफेड की आक्रामक बिक्री और प्रचुर स्टॉक के चलते सोयाबीन बाजार दबाव में

देश भर के सोयाबीन बाजारों में इस सप्ताह कमजोरी का रुख देखने को मिल रहा है, जिसका मुख्य कारण नैफेड की आक्रामक बिकवाली है। कल हुई नीलामी में नैफेड ने लगभग 49,000 टन सोयाबीन बेचा, जिसमें से 35,716 टन अकेले महाराष्ट्र में बिका। इस बड़े पैमाने पर हुई बिक्री ने कीमतों पर तुरंत दबाव डाला है, जिसका असर विभिन्न बाजारों में साफ़ दिखाई दे रहा है। इंदौर में, कीमतें ₹4000 से ₹4300 के बीच रहीं, जबकि दाहोद में, कीमतें ₹4150 से ₹4300 के बीच रहीं। महाराष्ट्र के प्रमुख प्रसंस्करण केंद्रों जैसे सोलापुर, लातूर, कुसानूर और हिंगोली में, औसत कीमतें ₹4580 से ₹4600 रहीं, जो पिछले दिन की तुलना में ₹20 प्रति क्विंटल की गिरावट दर्शाती हैं। 1 जुलाई तक, किसानों और प्रसंस्करणकर्ताओं के पास कुल मिलाकर 11.52 लाख टन स्टॉक होने का अनुमान है, जबकि नैफेड के पास अभी भी लगभग 13.50 लाख टन स्टॉक है। अगले तीन महीनों में अपेक्षित पेराई माँग की तुलना में, उपलब्ध स्टॉक पर्याप्त से अधिक प्रतीत होता है। अनुमान है कि 5-6 लाख टन स्टॉक आगे बढ़ाया जा सकता है। सोयाबीन की बुवाई का रकबा 95.045 लाख हेक्टेयर तक पहुँच गया है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 10% कम है। नीतिगत मोर्चे पर, नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि भारत सैद्धांतिक रूप से अमेरिका से गैर-जीएम सोयाबीन के आयात पर सहमत हो सकता है, लेकिन जीएम फसलों के प्रति जनता और नीति निर्माताओं की मौजूदा भावना को देखते हुए फिलहाल ऐसी मंजूरी मिलना संभव नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, सीबीओटी पर सोयाबीन वायदा 9 जुलाई को गिर गया, लेकिन 10 जुलाई को इसमें थोड़ी रिकवरी देखी गई। सोया खली की कीमतें 2-2.4 डॉलर प्रति टन तक बढ़ गईं, जबकि सोया तेल की कीमतें बढ़कर 20.15-20.32 सेंट प्रति पाउंड हो गईं। वैश्विक बाजारों में फिलहाल कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है। भारत में, सोयाबीन की कीमतों का भविष्य का रुख नैफेड की बिक्री रणनीति और मानसून की प्रगति पर निर्भर करेगा। कीमतें फिलहाल एमएसपी से नीचे बनी हुई हैं, लेकिन सरसों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए, आगामी त्योहारी सीजन में सोयाबीन की कीमतों में तेजी की संभावना है।

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