ऑस्ट्रेलियाई आयात से देसी चना के भाव नरम, नई फसल से पहले तेजी की संभावना
ऑस्ट्रेलिया का देसी चना पहले ही मुंबई पहुंच चुका है और अगले महीने भी इसकी आवक होने की संभावना है। इसी कारण राजस्थानी चना तथा हाजिर बाजार में भाव दबाव में बने हुए हैं, क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई चना कम दामों पर बिक रहा है। हालांकि, आने वाली घरेलू फसल को अक्टूबर के अंत में हुई बारिश से भारी नुकसान हुआ है, जैसा कि मटर की फसल में देखा गया। ऐसे में नए साल में, नई फसल के आने से पहले ही देसी चना के भाव फिर से बढ़ने की प्रबल संभावना बन रही है। हमारा मानना है कि ऑस्ट्रेलियाई चना के लगातार कम भाव पर आयात सौदे होने से देसी काले चना के दाम तेज़ी से गिरे हैं, जिससे व्यापारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसके बावजूद, मौजूदा भाव पर देसी चना को संभालकर रखना चाहिए, क्योंकि आगे चलकर इसमें फिर से लाभ मिलने की संभावना है। गौरतलब है कि किसानों के अनुसार मटर की फसल में फली तोड़ने के बाद उनकी पूंजी का केवल लगभग 30 प्रतिशत ही बचा है। इसी तरह की स्थिति देसी चना में भी बनती दिखाई दे रही है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में देसी चना की बुवाई अक्टूबर में होती है, जबकि राजस्थान में 10-12 नवंबर तक बुवाई की जाती है। इस बुवाई को भी अक्टूबर के अंत की बारिश से भारी नुकसान हुआ है, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई चना की लगातार आवक के कारण व्यापारी इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलियाई चना अक्टूबर-नवंबर की शिपमेंट से ही आना शुरू हो गया था। जो माल मुंबई उतरा है, उसका व्यापार ₹5,250-5,260 प्रति क्विंटल के आसपास हुआ है। इसमें लगभग ₹270 खर्च जोड़ने के बाद दाल मिलों को इसका पड़ता ₹5,540-5,550 आता है। हाजिर बाजार में यही माल जनवरी-फरवरी डिलीवरी के लिए ₹5,550-5,560 प्रति क्विंटल बिक रहा है। इसी वजह से राजस्थानी चना भी ₹5,600-5,625 प्रति क्विंटल पर टिक गया है, जबकि तीन महीने पहले लॉरेंस रोड पर इसके भाव ₹6,400 प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे। वर्तमान में तेजी-मंदी का व्यापार करने वाले कारोबारी तथा दाल मिलें मुंबई से चना खरीद रही हैं और जनवरी-फरवरी शिपमेंट के लिए आगे के सौदे ₹5,100-5,125 प्रति क्विंटल के भाव पर बोले जा रहे हैं। इसमें ₹270 खर्च जोड़ने के बाद पड़ता ₹5,375-5,400 आता है और अभी भुगतान भी नहीं करना पड़ता, इसी कारण सट्टा व्यापार करने वाले कारोबारी आगे के सौदे खरीद रहे हैं। हालांकि यह ध्यान देने वाली बात है कि जनवरी-फरवरी शिपमेंट का चना मार्च-अप्रैल में आएगा, उस समय घरेलू फसल भी बाजार में आ जाएगी, इसलिए इन महीनों के सौदे अब कम हो रहे हैं। एक तरफ पीछे के सौदे घट रहे हैं और दूसरी ओर आवक धीरे-धीरे बढ़ रही है। इससे ऐसी स्थिति बन रही है कि मौजूदा फसल की वास्तविक स्थिति अभी पूरी तरह भावों में नहीं आ पाई है। जब फसल में हुए नुकसान की सच्चाई सामने आएगी, तब देसी चना फिर से अच्छा लाभ दे सकता है। केवल देसी चना ही नहीं, बल्कि काबुली चना की फसल भी अक्टूबर के अंत की बारिश से प्रभावित हुई है। फिलहाल बाजारों में ग्राहकी की कमी है और चारों तरफ ऑस्ट्रेलियाई माल की दहशत बनी हुई है। मटर में निचले भाव से ₹8 प्रति किलो की तेजी आ चुकी है और आगे ₹8-10 प्रति किलो और तेजी की प्रबल संभावना बन गई है। राजस्थानी चना की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर दिखाई दे रही है, लेकिन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक-तीनों राज्यों में किसानों के अनुसार फसल में भारी पोल आ गया है। देसी चना के लिए जनवरी-फरवरी का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है और आगे की तेजी-मंदी काफी हद तक मौसम पर निर्भर करेगी। मौजूदा समय में बाजार की सुस्ती को देखते हुए खरीदार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं, इसलिए भाव में ₹50-75 की और गिरावट संभव है। हालांकि, इन गिरे हुए भावों पर व्यापार और माल की खरीद करना लाभकारी साबित हो सकता है।